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मंचन : ग्रामीण जिंदगी के छल-प्रपंच, भाईचारा, न्याय-अन्याय के चक्र को 'पंच परमेश्वर' ने किया परिभाषित

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रांची:

बात उर्दू की हो या हिंदी की। प्रेमचंद के रचनाकर्म ने इसे सबसे अधिक समृद्ध किया। आज भी वो आदर्श लेखक हैं। पंच परमेश्वर उनकी ऐसी ही अमर कहानी है, जिसमें ग्राम्य जीवन के बहाने नारी सशक्तीकरण की अलख बुलंद होती है। 'पंच परमेश्वर' ग्रामीण जिंदगी के छल-प्रपंचों, दोस्ती, भाईचारा, न्याय-अन्याय के चक्र को परिभाषित करती हुई एक सजीव कहानी है। जिसका जीवंत मंचन कडरू स्थित झारखंड फिल्म एंड थिएटर एकेडमी में आज शाम किया गया।

 

इनके अभिनय से नाटक जीवंत

जेएफटीए मिनी सभागार में वीकेंड बैच के छात्रों के अभिनय से सजे इस नाटक का नाट्य रूपांतरण किया है गिरिजा शरण अग्रवाल ने जबकि नाटक का निर्देशन किया राजीव सिन्हा ने। नाटक को वर्षा कुमारी, सन्नी प्रताप सिंह, नेहा कुमारी सूरज पर्या, नरेंद्र अहीर, दीपेंद्र कुमार, नीतीश कुमार, शाहबाज आलम और सोमकांत कुमार जैसे युवा कलाकारों ने अपने अभिनय से साकार किया। नाटक मंचन से पहले प्रेमचंद के जीवन, उनकी कहानियां, उनकी उपलब्धियों और सम्मान पर गई वर्षा रानी, ऋषिराज, शिवशक्ति, बबिता कुमारी और अपराजिता रॉय ने दर्शकों को जानकारी दी।

 

 

क्या है कहानी

पंच परमेश्वर कहानी में दो मित्र जुम्मन शेख और अलगू चौधरी अलग-अलग झगड़े में पंचायत करने के लिए चुने जाते है। दोनों पारस्परिक मित्रता का नाता भूलकर वही फैसला करते है जो न्यायपूर्ण होता है। जुम्मन का मित्र अलग होकर अलगू फैसला विरुद्ध करता है क्योंकि जुम्मन शेख उसकी नजर में दोषी है और इसी तरह जुम्मन, जो अलगू से बदला लेने की भावना से उत्तेजित है। पंच के आसन पर आकर उसके विरुद्ध फैसला नहीं कर पाता है क्योंकि अलगू निर्दोष है।प्रेमचंद्र ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि पंच का आसन परमेश्वर का आसन होता है। इस आसन पर बैठकर कोई धर्म-विरुद्ध बात नहीं बोल पाता है। इस प्रकार न्याय-पालन के रूप में पंच के पद को परमेश्वर के पदस्वरूप दर्शाने वाली इस कहानी का शीर्षक 'पंच पारमेश्वर' रखा जाना युक्तिसंगत और सार्थक है।